अंकों का महत्त्व हमारे जीवन में क्यों इतना ज्यादा हैं

भारतीय ज्योतिष तथा मन्त्र, तन्त्र और यन्त्र और हस्तरेखा विज्ञान में भी अंकों का महत्त्व किसी से छिपा नहीं है ? 


अंकों के योगदान के बिना' इसमें से किसी का भी काम नहीं चल सकता । 

ज्योतिष का आधार गणित है तथा हस्तरेखाओं में भी घटनाओं का समय और तारीख निश्चित करने के लिए अंकों की ही सहायता ली जाती है । 

अंक किस प्रकार हमारे जीवन पर प्रभाव डालते हैं, इस बात की मीमांसा अथवा विवेचन विभिन्न पाश्चात्य विद्वानों ने किया है, क्योंकि वहां विभिन्न व्यक्ति विभिन्न विषयों में स्पे शलाइजेशन करने अथवा उसके विशेषज्ञ बनने का यत्न करते हैं। 

भारत में अभी यह परिपाटी बहुत नवीन है । 

अतः जैसा हमने अभी बताया, यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन की विशिष्ट घटनाओं का विवरण तैयार करे तो उसे उनमें एक तारतम्य मिलेगा । 

या तो वे घटनाएं किसी विशेष तारीख को हुई होंगी या उन तारीखों का मूल अंक या संयुक्त अंक मिलता होगा, या वे घटनाएं किसी निश्चित अन्तराल अथवा समय के व्यवधान के बाद घटित हुई होंगी ।

घटना एक क्रिया है और संख्या का अंकों या क्रिया से घनिष्ट सम्बन्ध है। 

इसी प्रकार शब्दों और अंकों का भी सम्बन्ध है । शब्दों को भी अंकों में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे किसी भी व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जा सकता है। 

व्यक्ति के नाम को अंकों में परिवर्तित करके उनके योग से जो मूल अंक प्राप्त होता है, वह उसकी ज्ञात अज्ञात शक्तियों, रहस्यों और उसके गुणावगुणों का भेद उजागर कर सकता है।

भारत में अंक ज्योतिष के व्यापक विवेचन का कोई विशेष उपक्रम

नहीं हुआ, परन्तु हमारा सारा धार्मिक और भौतिक जीवन अंकों के आधार पर ही चल रहा है। 

माला आदि के उदाहरण हम पहले ही दे चुके हैं, परन्तु देवी-देवताओं, ग्रहों- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु आदि के मन्त्रों के जप तक की संख्या निश्चित है। 

पूजा के समय अक्षरों तक की संख्या भी निश्चित की गई है। आप इस सम्बन्ध में जितने गहरे उतरते जाएंगे, उतने ही रहस्यों के परदे आपके सामने खुलते जाएंगे। 

ईश्वर की सृष्टि स्वयं एक रहस्य है और उस रहस्य को समझने में अंक आपको बहुत सहायता कर सकते हैं। 

यदि आप उनके रहस्यों को समझ लें तो आपके परममित्र के समान अंक आपकी बहुत महायता करते हैं। अंक अन्धविश्वास नहीं, वास्तविकता है । 

सप्ताह के दिन सात हैं। अनेक धर्मों में सात स्वर्गों की कल्पना की गई है । 

ईसाईयों के प्रमुख चर्च सात ही है। स्वर सात ही माने गए हैं।

बाइबिल में बात ही फरिश्तों की बात कही गई है। डेविड से ईसा तक सात ही पीढ़ियां मानी गई हैं। ओस्ले और महान भविष्यवक्ता एवं अक शास्त्री कोरो को तो यह

मान्यता है कि प्रकृति भी अंकों के इशारों पर चलती है। उदाहरणस्वरूप बिना कलम वाले पौधों के फूलों की पंखुड़ियों का आकार रोमन अंक 7 के समान होता है। 

प्रायः पखुडिया ऊपर से चौड़ी-सी होती हैं और जड़ की ओर पैनी व पतली । 

कमल के फूल का आकार इसका बहुत ही उपयुक्त उदाहरण है। 

उसको मूल पंखुड़ियां सात ही होती हैं और उनका आकार भी 17 से मिलता-सा होता है।

कीरो कहता है कि 7 का अंक तो प्रभु की शक्ति का स्वरूप है। इसी अंक द्वारा प्रभु की रहस्यमयी शक्तियों का वर्णन किया जा सकता है। 

भगवान् बुद्ध ने अपने धर्म-प्रचार के लिए कमल के फूल को ही चुना । अंक 7 का महत्व तो स्वयं स्पष्ट है। 

सप्ताह के सात दिनों को लीजिए, जिनका हमने अभी उल्लेख किया।

सभी देशों, सभी भाषाओं और सभी धर्मों में सप्ताह के दिन सात ही हैं और एकसमान ही सातों ग्रहों के नामों का स्मरण कराते हैं। 

चीनी,असीरियन, हिन्दू, मिश्र, हिब्रू ग्रीक, लैटिन, फैन्च, जर्मन अथवा अंग्रेजी और संस्कृत में भी सातों दिनों के नाम समानार्थी है। 

सण्डे सन डे-हिन्दी में रविवार (सूर्य का दिन) सभी भाषाओं में प्रयुक्त शब्द पूर्णतया समानार्थी है और सारे विश्व में एक समान भावना से देखा जाता है।

आपको ज्ञान होना चाहिए कि इस ब्रह्माण्ड और इस धरती का येक कण कन अपना महत्व और अर्थ रखता है। 

विशेष रूप से उसमें एक गुड़ रह छिपा है। उसका अपना स्थान है, स्थिति है, महत्व है और कम है। सभी वस्तुओं के क्रम में जो उसकी रचना की अभूतपूर्व कृतियां हैं, 

जैसे सप्ताह का प्रत्येक दिन प्रत्येक दिन का प्रत्येक घण्टा और घण्टे के हर मिनट का कुछ न कुछ भाव है, अर्थ है और संख्या या नम्बर भी है।

सभी विद्वानों, दार्शनिकों और विज्ञानवेत्ताओं ने सृष्टि की प्रत्येक वस्तु की नियमितता, व्यवस्था और इस सारी पद्धति की प्रशंसा की है और इसे स्वीकारा है, अन्य किसी भी वस्तु से इस व्यवस्था या गणना की। 

तुलना नहीं की जा सकती। यह आकाशीय तत्त्व, यह चांद, सितारे, ग्रह-उपग्रह लाखों वर्षों से अपनी-अपनी धुरी पर घूम रहे हैं, परन्तु उनके इस कार्य में एक मिनट का भी अन्तर नहीं आया। 

यह बात तो प्रायः हम सभी जानते हैं कि उन सभी का पृथ्वी के कण-कण पर पृथक्-पृथक् प्रभाव होता है, परन्तु वह प्रभाव क्या है, इस विषय पर अनन्तकाल तक विचार होता रहेगा और सम्भवतः यह सब इन्सान के लिए रहस्य ही बने रहेंगे। 

इतने पर भी प्राचीन दार्शनिकों ने सम्भवतः अध्ययन, अनुभव, मस्तिष्क के सन्तु लन अथवा अन्तःप्रेरणा से यह पता लगा लिया कि इनमें से अनेक नियमों सिद्धान्तों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है या हमारा जीवन उनके वश में है और उनका यह ज्ञान इतना सही है जितने कि दिन और रात ।

उन विचारकों अथवा दार्शनिकों ने सात प्रमुख ग्रहों की व्यवस्था और हमारे जीवन पर उनके प्रभाव के सम्बन्ध में सदियों पहले जो सिद्धान्त प्रतिपादित किए थे, वे आज भी सत्य है। 

उदाहरण के लिए एक साधारण व्यक्ति भी जानता है कि चन्द्रमा का पृथ्वी के पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है, क्योंकि ज्वार-भाटे के रूप में उसने इस प्रभाव को अपनी

से देखा है। इतना ही नहीं, अनेक व्यक्तियों ने यह भी सुना-देखा होगा कि चन्द्रमा का मानसिक रूप से असन्तुलित व्यक्तियों के मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है। 

ज्वार-भाटे में गहरे समुद्र का लाखों-करोड़ों टन पानी इतना ऊंचा लहरें मारता है मानो आकाश में मीनार-सी बन गई हो 

इंगलैण्ड, फ्रांस और जर्मनी के अनेक वैज्ञानिकों का यह मत है कि पानी में यह तरंगें इसलिए उठती हैं कि पानी के नीचे की ठोस भूमि में जो लहरें हैं वे चन्द्रमा के प्रति आकर्षित होती हैं। 

आप अनुमान कर सकते हैं कि जब चन्द्रमा का घेरा केवल 2,100 मील का है और उसका प्रभाव हम पर इस प्रकार स्पष्ट रूप में हमें अनुभव होता है तो उन ग्रहों का हम पर क्या प्रभाव पड़ता होगा जो चांद से हजारों गुणा वृहदाकार हैं। 

सूर्य का घेरा 8,60,000 मील, शनि का घेरा 71,900 मील का है। यह थोड़े से उदाहरण आपको यह बताने के लिए हैं कि आपको यह जिज्ञासा हो कि इतनी दूरी पर होने के बावजूद यह आंकड़े कहां से, कब और कैसे प्राप्त किए गए।

हो सकता है कि आपको यह ज्ञान न हो सके कि इस सौरमण्डल के सम्बन्ध में, उनकी दूरियों, उनके आयतन और उनकी परिक्रमा आदि के सम्बन्ध में जो विशाल और व्यापक आंकड़े दिए गए वे कहां से आए, परन्तु आपको यह तो अवश्य ज्ञान हो जाएगा कि अंक ही उन सारी गणनाओं के आधार हैं ।

क्या यह आश्चर्यजनक नहीं कि सारी गणनाओं के आधार यह अंक ही हैं जो आपके जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, केवल ग्रह और उपग्रह ही नहीं ? 

हमें इस बात का आज भी यह ज्ञान नहीं कि कब और किसने यह पता लगाया कि विभिन्न अंक हमारे जीवन में क्या महत्त्व रखते हैं और उनका किस प्रकार और क्या प्रभाव पड़ता है, परन्तु इनके प्रभाव से हम उसी प्रकार इन्कार नहीं कर सकते जिस प्रकार उनकी विद्यमानता को नहीं नकारा जा सकता। 

सत्य रूप से तो हमें यह भी ज्ञान नहीं कि हमारा जीवन कब और कैसे आरम्भ हुआ, पर आप उसके अस्तित्व से इन्कार कैसे करेंगे ? 

इसी प्रकार हमें यह भी ज्ञान नहीं कि अंकों के रहस्य मय प्रभाव के विषय में किसने कब खोज की, परन्तु आप उनके प्रभाव से ..इन्कार नहीं कर सकते । 

वे भले ही अनन्तकाल के लिए हमारे लिए रहस्य बने रहें, परन्तु हम जाने-अनजाने उनका प्रयोग करते आ रहे हैं और करते रहेंगे । 

बालज़ाक ने ठीक ही कहा है, "अंकों के बिना हमारी सभ्यता का सारा ढांचा ही चरमरा जाएगा ।"

इस अध्याय की समाप्ति से पूर्व हम आप पर एक और रहस्य प्रकट करना चाहते हैं कि सारी सृष्टि के रहस्य, ग्रहों-उपग्रहों की चाल, आयतन, दूरियां, प्रभाव, उनका वर्ष, मास, सप्ताह, दिन, घण्टों, मिनटों, पलों और प्रतिपलों तक का ज्ञान मानव को उस प्रभु ने ही दिया। 

सभी धर्म और धार्मिक ग्रन्थों में इस बात का उल्लेख है कि उसी के 'इल्हाम' से यह सारा ज्ञान प्रसारित हुआ । 

वेद, उपनिषद, गीता, कुरान, जिन्दावेस्ता आदि सभी धर्मग्रन्थ इस बात की दुहाई दे रहे हैं कि यह सब ज्ञान उस प्रभु का ही दिया हुआ है । 

बाइबिल ने तो इस पर और भी अधिक प्रकाश डाला है और सामान्य व्यक्ति की समझ में आने वाली बात कही है। 

उसमें लिखा है, "प्रभु मनुष्य के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता रहा है ।" यूनानी दार्शनिकों का जो यह विश्वास रहा है कि एक ऐसा न्सुअवसर था, "जब प्रभु ने स्वयं मनुष्य से बातें कीं" यह तथ्य इससे और भी पुष्ट होता है कि सभी धर्मों के प्रणेताओं ने प्रभु से बातें करने की घोषणा की है ।

आज मनुष्य इस बात पर तो विश्वास करता है कि हमारे जन्म और मरण की घड़ियां नियत हैं और इन दोनों प्रमुख घटनाओं के बीच के वर्ष, दिन और घण्टों से मिलकर ही हमारे जीवन का सिलसिला बनता है। 

जब आप यहां तक एक बात ठीक मानते हैं तो यह भी मान लेना चाहिए कि हमारे जीवन के हर मोड़ की संख्या और स्थान भी सुनिश्चित हैं। 

इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि यदि हम इन प्राकृतिक नियमों का ध्यान रखेंगे तो हमारा जीवन अधिक सुखी और पूर्ण बनेगा और यदि हम इस तथ्य की अवहेलना करते रहेंगे और जीवन के इन सिद्धान्तों का पालन नहीं करेंगे तो हमारा जीवन सुखी और सम्पूर्ण नहीं हो सकेगा । 

यह वैसा ही है जैसे एक कारखाने में काम करने वाला मजदूर किसी मशीन के पहिये को पकड़कर उसे विपरीत दिशा में चलाना चाहे तो वह या तो उससे कुचल कर मर जाएगा या फिर अपने हाथ-पांव तोड़ बैठेगा । 

आपको भी अंकों के इस चक्र को विपरीत दिशा में घुमाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। 

यदि आप इन्हें अपने अनुकूल बना लेंगे अथवा उनका रहस्य समझ कर उनकी प्रेरणा के अनुसार चलेंगे तो आपके जीवन में भी एक सामंजस्य आ जाएगा और आप अधिक स्वस्थ, प्रसन्न और सुखी हो जाएंगे ।

आप जानते ही हैं कि अज्ञान सब दुःखों का मूल है तो फिर क्यों नहीं अंकों के ज्ञान से लाभ उठाकर अपने जीवन को नया रूप प्रदान करते ?

मुझे लगता हैं आप कुछ न कुछ समझ गए होंगे। अगर आपको यह पसंद आया तो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताएं 

तथा आपका कोई ऐसा प्रश्न हो तो वह नीचे लीखिये मैं आपको उसका उत्तर जरूर प्रोवाइड करूँगा।

इसको सभी के साथ शेयर भी करे तभी लोग थोड़ा बहुत इसको पढ़ेंगे और समझ पाएंगे।

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