प्राचीन भारत काल में यूरोप के बाजार भारतीय माल से लदे रहते थे।
इसी माल के आधार पर सम्पूर्ण पश्चिमी जगत भारत की समृद्धि का अनुमान लगाया करता था।
भारत के यूरोपीय देशों से व्यापारिक सम्बन्ध तीन मार्गोंसे स्थापित थे :
(1) स्थल मार्ग-
व्यापारी लोग भारत के पश्चिमी द्वार खैबर दर्रे को पार करके अफगानिस्तान और समरकन्द होते हुए
कुस्तुनतुनिया जाते थे।
यहीं से भारतीय माल यूरोपीय देशों के बाजारों में जाता था।
(2) समुद्री मार्ग-
भारतीय माल अरब सागर से जहाजों में भरकर लाल सागर होकर सिकन्दरिया पहुँचता था और वहाँ से भूमध्य सागर होकर विभिन्न यूरोपीय देशों में पहुँच जाता था।
(3) मिला-जुला मार्ग-
व्यापारी लोग भारतीय माल को अंशत: समुद्री व अंशत: स्थल मार्ग से भी ले जाते थे।
भारत से माल जहाजों में भरकर अरब सागर के मार्ग से फारस की खाड़ी तक जाता था, जहाँ से यह बगदाद पहुँचता था।
बगदाद से स्थल मार्ग के द्वारा भारतीय माल यूरोप पहुँचता था।
# नए व्यापारिक मार्ग
कालान्तर में मध्य एशिया में उथल-पुथल मची।
कुस्तुनतुनिया व सिकन्दरिया आदि पर तुर्कों का अधिकार स्थापित हो गया, जिसके कारण भारत के यूरोप से व्यापारिक सम्बन्धों में अवरोध उत्पन्न हो गया क्योंकि तुकों ने इन मार्गों को बन्द कर दिया।
इसी परिस्थिति में यूरोपवासियों ने भारत में आने के लिए नए मार्ग की खोज की। सर्वप्रथम स्पेन की रानी के प्रोत्साहन पर कोलम्बस ने भारत को खोज प्रारम्भ की किन्तु वह भारत पहुँचने के स्थान पर अमेरिका पहुँच गया।
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