अंक ज्योतिष क्या हैं और उसका उपयोग हम हमारे जीवन में कैसे करें ?

आप यह निस्संकोच कह सकते हैं कि सभी प्रकार के ज्ञान का उद्गम किसी न किसी मानव मस्तिष्क से हुआ, परन्तु इसका भाव यह नहीं कि ज्ञान पहले नहीं था । 


ज्ञान तो विद्यमान् था, परन्तु उसका अन्वेषण तत्त्व वेत्ताओं ने ही किया । 

सूर्य, चन्द्रमा, सितारे, ग्रह, उपग्रह, अग्नि, वायु, जल आदि पांचों तत्त्व पहले से ही विद्यमान् थे, परन्तु इनके सम्बन्ध में विस्तृत ज्ञान, उनके कार्य, प्रभाव, दूरियां और उनकी अपनी कक्षाओं में स्थिर होना, कालान्तर में विभिन्न दिग्गज विद्वानों, ऋषियों, मुनियों और विज्ञान बेत्ताओं द्वारा • सुनिश्चित किया गया। 

सूर्य अपनी धुरी पर आरम्भ से ही घूम रहा है। चन्द्रमा और पृथ्वी की गतिविधियां भी सृष्टि का क्रम ही है। 

इन क्रमों और चालों का निर्धारण जिस विद्या द्वारा किया वह खगोलशास्त्र कहलाया तथा इन ग्रहों की दशा, महादशा और अन्तर्दशा तथा प्रभाव आदि का निर्धारण ज्योतिष द्वारा सम्भव हुआ ।

इस प्रकार विभिन्न विद्याओं का ज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ और उनकी शाखा प्रशाखाएं बनीं । 

ज्योतिष भी हस्तरेखा, प्रश्न, रमल और अंक- विद्या आदि शाखाओं-प्रशाखाओं में बंटता गया । अंक-विद्या ज्योतिष का ही एक भाग है । 

ज्योतिष के विषय में कहा जा सकता है कि बहुत यत्न से ही इस विद्या को सीखा जा सकता है, परन्तु अंक ज्योतिष के सम्बन्ध में यह बात नहीं । 

यूं तो ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में श्रम करना पड़ता है, परन्तु अंक-ज्योतिष ऐसी विद्या है जिसे सामान्य समझ-बूझ का व्यक्ति भी थोड़ा सा यत्न करके ही सीख सकता है और अपने साथ दूसरों का मार्गदर्शन भी कर सकता है ।

कुछ लोग अंक ज्योतिष को पाश्चात्य देन मानते हैं, परन्तु यह उनका "श्रम है । 

अंक ज्योतिष मूलतः भारतीय विद्या है, परन्तु आजकल जिस रूप में यह भारत में प्रसिद्ध और प्रचलित हो रही है, इसका वह स्वरूप अवश्य पाश्चात्य है ।

आधुनिक युग का महान् भविष्यवक्ता कीरो पाश्चात्य विद्वान् था । 

वह भारत में कई वर्ष रहा और उसने यहां ज्योतिष के साथ-साथ अंक विद्या का भी अध्ययन किया। 

उसने लिखा है, "मैं ज्ञान प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में पूर्व में गया और वहां के अनेक ब्राह्मणों के सम्पर्क में आया । वे प्रागैतिहासिक काल से इस गूढ़ एवं रहस्यपूर्ण विद्या को जानते थे । 

उनकी धार्मिक क्रियाएं और पूजा-पाठ आदि के अभूतपूर्व ढंग थे । 

उन्होंने मुझे अन्य विद्याओं के साथ अंकों के गूढ़ रहस्य का ज्ञान भी दिया और बताया कि उनका क्या महत्त्व है तथा मानव जीवन से उनका क्या सम्बन्ध है । "

कीरो ने ही आगे लिखा है, "हिन्दुओं ने प्राकृतिक नियमों, रहस्यों और गूढ़ तत्वों की खोज की। 

वे अपनी विद्या में पूर्ण पारंगत थे, परन्तु वे इसे अत्यन्त गुप्त रखने में विश्वास रखते थे, यहां तक कि अपने उत्तरा 'धिकारियों को भी इसे नहीं बताते थे । 

धीरे-धीरे यह ज्ञान लुप्त होता चला गया और अन्धविश्वासों और निरर्थक प्रकार की क्रियाओं तथा कर्मकाण्डों के अम्बार के नीचे दब गया। 

उन्होंने ऐसे अनेक गुप्त रहस्यों का पता लगा लिया था, जिन्हें आज के विज्ञान ने वर्षों के परिश्रम और परीक्षण के पश्चात् पूर्णतया सही और शुद्ध पाया । 

कितने वर्षों में किन ग्रहों की परिक्रमा पूरी होती है आदि ज्ञान, अनन्त काल से चलता हुआ हमें विरा -सत में मिला और आधुनिक उपकरणों से, आश्चर्य में डाल देने वाले इस ज्ञान की सच्चाई और उपयोगिता सिद्ध हुई । "

कोरो का उदाहरण हमने केवल आपके सन्तोष के लिए दिया है, क्योंकि अपने पूर्वजों में अविश्वास की प्रवृत्ति हमारे मन में घर कर चुकी है और हम यह मानने लगे हैं कि पाश्चात्य विद्वान् और विज्ञानवेत्ता जो कुछ कहते हैं केवल यही सच है। 

वैसे इस विषय में इतने अधिक उदाहरण दिए जा सकते हैं जिनसे यह सिद्ध हो जाता है कि अंक ज्योतिष मूलतः भारतीय विज्ञान है और इस विज्ञान के पण्डितों ने न जाने किन यन्त्रों के द्वारा ऐसी अद्भुत खोजें की जिनका हमारे जीवन से गहरा सम्बन्ध है और -सदा-सदा के लिए रहेगा।

इस विद्या के विदेशी होने अथवा विदेशों से यहां आने के भ्रम के पीछे शायद भारतीय ज्योतिष में अनेक स्थानों पर प्रचलित विदेशी शब्दों का प्रयोग है। 

इन शब्दों से बहुत से व्यक्ति यह अनुमान लगाते हैं कि ज्योतिष से का बहुत-सा महत्त्वपूर्ण भाग विदेशों से आयातित अथवा उसकी नकल है, पर बात ऐसी नहीं है । 

इतिहास के प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि भारतीय ज्योतिष में पारंगत कुछ विद्वानों को अरब देशों में इस इल्मेनौब की जानकारी प्राप्त करने व इसे सीखने के लिए बुलाया गया । 

वे वहां गए तथा वहां उन्होंने इस विद्या का प्रचार-प्रसार किया ।

इस प्रकार उन देशों से भी अनेक जिज्ञासु भारत आकर इस विद्या का अध्ययन करते रहे तथा अपने देश वापस जाने से पहले भारत के जन साधारण के साथ अपने सम्पर्क के कारण अपनी भाषा के बहुत से शब्द यहां छोड़ गए तथा भारतीय भाषाओं के अनेक शब्द अपने साथ ले गए । 

शायद शब्दों के इस भ्रमजाल के कारण भी कुछ लोग इस विद्या को विदेशी मानते हैं, जबकि यह शब्दों का आदान-प्रदान मात्र है ।

हमारे पूर्वजों द्वारा सुनिश्चित अंकों का महत्त्व और उनसे सम्बन्धित -तर्क से परिचय प्राप्त करने पर आपको पूर्ण विश्वास हो जाएगा कि हम भारतीय अनन्त काल से अंक-विद्या में पारंगत थे। 

उदाहरण के लिए हमारे देश में पूजा-पाठ का बड़ा महत्त्व है । सभी धर्मों में निष्ठा रखने वाले माला द्वारा जप करते हैं। अधिकांश मालाएं 108 मणियों की होती हैं । 

आप पूछ सकते हैं कि मालाओं में इतने ही दाने क्यों रखे गए ? कम या अधिक क्यों नहीं ? इसके पीछे बड़ी सूझ-बूझ और रहस्य है। 

दिन में - सूर्योदय से लेकर पुनः सूर्योदय तक के काल का परिमाण 60 बड़ी माना गया है। एक घड़ी 60 पल और एक पल में 60 विपल होते हैं। 

इस प्रकार एक अहोरात्र में 60 × 60 × 60 = 2,16,000 विपल हुए। अर्थात *दिन में 1,08,000 और रात्रि में 1,08,000 विपल हुए । 

दशमलव प्रणाली से शून्य अलग किए जाएं तो रह गया-108 ।

इसी प्रकार सूर्य भी जब राशि परिभ्रमण में एक चक्र पूरा कर लेता है तो उसे एक वृत्त पूरा करना कहा जाता है। एक वृत्त में 360 अंश होते हैं। 

सूर्य की एक प्रदक्षिणा के अंशों की कला बनाई जाएं तो 360X 60 = 21,600 कला हुई । सूर्य आधे वर्ष उत्तरायण में रहता है और आधे वर्ष दक्षिणायन में। 
इसलिए 21,600 को आधा किया जाए तो 10,800 संख्या प्राप्त होती है ।

इसीलिए 108 मणियों की माला का विधान किया गया। इसी प्रकार विभिन्न मणियों की मालाओं का विधान भी है। 

जैसे-25 मणियों की माला द्वारा जप करने से मोक्ष प्राप्त होता है, 30 मणियों की माला से धन प्राप्ति, 21 मणियों की माला से सभी अर्थों की सिद्धि और 54 से सर्व कार्य सिद्धि और 108 से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं ।

पैथागोरस ने कहा है, "इस विश्व का निर्माण अंकों की शक्ति से ही हुआ और इन अंकों की शक्ति को भारतीय विद्वान् भली-भांति जानते थे।

"भारतीय ज्योतिष में नौ ग्रहों की प्रधानता है, इसी प्रकार अंक ज्योतिष में भी नौ अंकों को ही मान्यता प्राप्त है ।

इस सम्बन्ध में आप जितना गहन अध्ययन करते जाएंगे आपको अंकों का विचित्र रूप दिखाई देगा। 

आप इस संसार को अंकों के प्रभाव से जकड़ा हुआ पाएंगे, कहीं भी इससे मुक्त नहीं देख सकेंगे ।

आश्चर्य की बात तो यह है कि आज के सर्व-साधन सम्पन्न वैज्ञानिक युग में विज्ञानवेत्ता केवल इतना ही सिद्ध कर पाए हैं कि प्राचीन हिन्दुओं, असीरियनों और मिश्रवासियों ने जो कुछ भी कहा था अथवा जो सिद्धान्त निश्चित किए थे, वे पूर्णतया सही और सत्य हैं। 

आज तक इस बात का पता नहीं चला कि उन मार्ग दृष्टाओं ने इन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किस आधार पर तथा किन उपकरणों द्वारा किया। 

उस समय किस प्रकार की अनुसंधानशालाएं या वेधशालाएं थीं अथवा किस अन्तःप्रेरणा के वशीभूत होकर वे यह सब कुछ निर्धारित कर गए ? 

अन्तःप्रेरणा किसी बात के सत्य होने की विवेचना तो दे सकती है, परन्तु वैज्ञानिक सिद्धान्तों की स्था- पना नहीं कर सकती । 

आश्चर्यपूर्ण ढंग से सत्यसिद्ध सिद्धान्तों की परि कल्पना उन्होंने किस प्रकार की कि वे ध्रुव सत्य बनकर रह गए, आज भी

इस विषय में और अधिक खोज की आवश्यकता है । इस विषय में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि हमारे पूर्वजों ने जो यह महत्वपूर्ण आंकड़े दिए, उनका सम्बन्ध उनके आध्यात्मिक, पारलौकिक और योग द्वारा प्राप्त अनुभूतियों से है। 

उन्होंने मानव देह के आभ्यन्तर चक्रों की स्थितियों के आधार पर इस ब्रह्माण्ड की कल्पना की और अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर ऐसे निष्कर्ष निकाले जिन्होंने विश्व भर को आश्चर्य में डाल दिया। 

उनके द्वारा निकाले गए इन सिद्धान्तों का आधार इतना शुद्ध और सटीक है, जिन्हें आज तक बदला नहीं जा सका और आगे भी उनमें परिवर्तन की कोई सम्भावना नहीं दीखती ।



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